सुनो न....
कई बार असमंजस में , मैं फस जाती हूं ...
क्या सही, क्या गलत समझ न पाती हूं
मेसेज करू या नहीं !! कही वो व्यस्त तो नहीं....
कहीं ज्यादा नजदीकी दूरी न ले आये ...
कही मेरा चुप रहना भी उसे अखर न जाये ...
बार बार मेसेज करने से मुझे डेस्परेट न समझे।।।
कही कुछ न कहने से मेरा कम इंटरेस्ट न समझे...
उफ्फ कितना काम मे वो व्यस्त रहता है...
ऐसा भी क्या काम, कि मुझसे दूरी सहता है...
पूरा दिन इसी सोच में बिताती हूं
कैसे कहूँ मन ही मन तुमसे कितना बतियाती हूं..
प्रिया वच्छानी