यूं तो लाखो दीपक है,
राह में,
पर मै अकेला आज भी जल रहा हूं,
सदियों से,
इस खोज में,
कभी तो अपने अंदर के अंधकार को मिटा पाऊंगा,
"तमसो मा ज्योतिर्गमय"
को सच में पा पाऊंगा,
लाखो दीपकों के जगमग भी उसे मिटा नहीं सका,
क्यों?
वो भी तो अपने अंदर वही समेटे है,
वो भी तो अन्दर से काले ही है,
मै अकेला आज भी जल रहा हूं,
सदियों से
उस खोज में,
कभी तो अपने अंदर के अंधकार को मिटा पाऊंगा।
©krishnakatyayan