छोड़ अकेला इस जग में,
मां ! तू क्यों चली गई ?
शैशव से अब तक तूने
माँ !मुझे दुलराया था ,
अनसुलझी हर गाँठों को ,
पल भर में सुलझाया था ।।
जितना प्यार दिया तूने ,
फिर क्यों ममता भूल गई ?
मेरे नन्हे कदमों को
तूने चलना सिखलाया था।
कांटो भरे सफर में हंसकर ,
पाँवों को सहलाया था ।।
पथरीली राहों में ठोकर ,
खाने को अकेला छोड़ गई ।
जब तक तू थी साथ मेरे ,
हर मुश्किल आसान लगती थी।
तेरे एहसासों के बीच ,
हर शाम सुहानी लगती थी ।।
तेरे बिन मैं कुछ भी नहीं,
क्यों प्रीत तोड़ कर चली गई ??
मां ! तेरे होने से जग सारा ,
अनमोल खजाना लगता था ।
बस एक तेरे ना होने से ,
अपना भी बेगाना लगता है।।
ढूंढ रही मैं हर एक शिवाला ,
जिसके धाम तू चली गई ।
माँ! तुम कहां चली गई ।।
माँ ! मैं हर मूरत मे ,
तेरी छाप ढूंढती रहती हूं ।
कहां रूठ कर चली गई ,
मन ही मन मैं रोती हूँ ।।
एक झलक दिखला दो ,
उम्मीद मेरा दम तोड़ गई ।
माँ !क्यों तू उस धाम चली गई ।।
नमिता गुप्ता (मौलिक ,स्वरचित रचना )