क्या करे, अब लफ्ज़ फीसलते है,
अरमाँ ए दिल , कभी फीसलते है;
बेदर्द कैसे रहै , हमदर्द दोस्ताना,
जख्मी दिल में ,सुकुन फिसलते है;
परदादारी के हुनर में , मुश्किलें है,
बेपर्दा होने से, राज़ फिसलते है;
होश में कहां जीते हैं , हकीकत में,
बेहोश रुह के, आलम फिसलते है
आनंद कैसे जीते, बाजी जिंदगीकी,
यहां इन्सान ,बात बातमें फिसलते है;