Hindi Quote in Blog by Vinay Panwar

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स्तब्धता
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एक स्त्री होकर भी कुछ स्त्री व्यवहार हमारी समझ से बहुत परे हैं।
विकट परिस्थियों में घिरी स्त्री की हमदर्द अधिकतर वही महिलाएं बनती है जो उस परिस्थिति को झेल चुकी हैं या फिर कहना चाहिए कि वह हमदर्द होने का दिखावा अधिक करती हैं। ऐसे में अनुमानतः वह अपनी भोगी पीड़ाओं का चरम उस वक़्त पीड़ित स्त्री को सहन करने पर मजबूर कर देती हैं।
इस व्यवहार को स्त्री स्वभावगत ईर्ष्या तो हरगिज नही कह सकते, शायद वह चाहती है कि जो पीड़ा उसने सही वह दूसरी स्त्री भी समझे। इस फेर में वह उस वक़्त सही गलत भी भूल जाती है।
स्त्री ही स्त्री की दुश्मन है यह उक्ति हर जगह चरितार्थ नही होती। कई बार संवेदनाओं के प्रवाह को शब्दचयन बाधित कर देता है। हमदर्द बनने की चाह में अनजाने में ही वह पीड़ित को और अधिक पीड़ा पहुँचा देती है।
यह भी हो सकता है कि उसके मन मे एक संतुष्टि का भाव हो कि शायद अब यह पीड़ित मेरी पीड़ा को समझेगी।
इस प्रक्रिया में एक स्त्री ना चाहते हुए भी कुछ घृणित रिवाजों को खुद ढोते हुए दूसरी स्त्री को भी ढोने पर मजबूर कर देती है।
परिस्थितिवश मजबूर हुई स्त्री के पास ईश्वर की सत्ता के कटु शाश्वत सत्य को स्वीकारने के इतर और कोई चारा भी तो नही होता। एक तो प्रिय परिजन के जाने का गहन दुख तीस पर समाज द्वारा थोपे गए रिवाज ।
इन रिवाजों का इतिहास भी किसी के पास नही है कि कहाँ से आरम्भ हुए और किसने इन्हें आगे बढाया। बस बिना सोचे समझे ढोते जा रहे हैं। वक़्त की संजीदगी को समझते हुए अक्सर पढ़े लिखे समझदार इंसान को भी ना चाहते हुए भी समाज के कथित ठेकेदारों के सामने झुकना पड़ जाता है।
एक स्त्री के विधवा होने पर जबरन उसकी दुनिया बदल दी जाती है जबकि एक पुरुष के विधुर होने पर उसके लिए नए मधुमास की उम्मीदें जाग जाती हैं।
पति के स्वर्गवासी होते ही पत्नी का श्रृंगार छीन लिया जाता है। बेड़ियों को और गहन कर दिया जाता है जबकि पुरुष के विधुर होने पर उसकी आज़ादी का बिगुल बजा दिया जाता है।
जब हम समानता की बात करते हैं तब यह भेदभाव किसी को नज़र नही आता।
स्त्री नई दुनिया बसाने में विश्वास नही रखती, वह बस अपनी बची दुनिया को सहेज कर रखना चाहती है।
जिसकी साँसे पूरी हुई वह चला गया, जो पीछे रह गया वह जिंदा है अभी। उसे जीने तो दो। जिंदा लाश बनाना चाहते उसे। धिक्कार है।
विद्रोही स्वभाव होने के बावजूद भी अक्सर ऐसी परिस्थितियों में मजबूरी स्तब्धता को जन्म देती है।

विनय...दिल से बस यूँ ही

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