'दील' हो...!!
बीना तेरे जीन्दगी का..अगर एक भी पल हो, तेरे बिन कभी कल हो..
तो ये दील बन जाए पथ्थर का, ना उसमें कभी भी कोई हलचल हो।
बीना तेरे साथ..अगर किसी राह पे साम हो, तेरे बिन कभी खुदी हांसील हो..
तो ये रात बन जाए स्वप्न-कफन का, ना उसमें कोई जाम-ए-महफील हो।
बीना तेरे पुरवत..अगर कोई खुशी हो, तेरे बिन कभी सांस-किनारे का सहारा हो..
तो ये जिस्म बन जाए तेरी ही हस्ती का, *हां* उसमे धड़कता-तबाह 'दील' हो..!!