ऊज़ार दो जीतना ऊज़ार सकते हो मेरे ग़ज़लों को तुम,
लफ़्ज़ों की कारीगरी होती क्या हे तुम भी सीख जाओगे।
लिखने लगोगे फिर ग़ज़ल तुम भी,
किसी को कभी आसमाँ तो कभी चाँद कहोगे।
खुद को मिटा दोगे तुम कागज़ कलम मे,
लफ़्ज़ों की कारीगरी होती क्या हे तुम भी जान जाओगे।