हे कृष्ण मुरारी,हे गिरधारी! छेड़ दे फिर वो मुरली की धुन न्यारी। सुन उस मधुर तान को छोड़ के ये मोह माया के बंधन, बन जाऊं फिर तेरी जोगन प्यारी। इतनी सी अर्ज है मोहन! चरण रज बनूं मैं तेरी, ले शरण में तू मुझको अपनी, जन्म मरण के बंधन से दे मुक्ति, कर भवसागर से पार।। ? सरोज ?