उसे पसंद था , उसे पसंद था बस दिमाक का एक फितूर था । इसी फितूर के चक्कर में आधी उम्र हमने गुज़ार दी , जो उसने कभी कहां भी नहीं उसको भी सच मान लिया । हम सोचते रहे हा उसको प्यार है हमसे पर वो तो किनारा कर के निकल गया । उसके वो प्यार भरे दो शब्द उन शब्दों ने कब गलतफमियों ने जगह ले ली पता ही नहीं चला । हा हमे आज भी लगता है की उसको प्यार है हमसे पर ना जाने वो कुछ कहता नहीं , जो कहा भी उसने ऐसा क्यों लगता है कि वो सच नहीं । उसको पसंद थे हम ऐसा हमको लगता था इसी के चक्कर में हम खुद से लड़ बैठे जो कभी ना थे हम वो आज बन बैठे ।