ज़माना हुआ कुछ अच्छा लिखे हुए , जब भी लिखा हाले दर्द ही लिखा । जैसे अपनी खुशियों को भूल ही गई थी मैं , मुझे लगा जैसे मैं बनी ही दुख और तकलीफ सहने के लिए ही हूं । फिर मुझे पता चला कि खुशियों को में अपने जीवन मैं जगह देना ही नहीं चाहती । डर था या कुछ भी केह लो जो भी था बस गाड़ी चल रही थी ।फिर आज किसी अपने ने कहा कि अपने जीवन का दूसरा पहलू भी देखो जो हो चुका उसे छोड़ कर एक नए सवेरे मैं कदम रखो ।