भारत माता के मस्तक पर,
घाव बहुत ही गहरा था ।
काश्मीर.की हर क्यारी पर ,
कुछ स्वानों का पहरा था ।
श्वान भौंक कर डरा रहे थे ,
सिंह नींद में सोए थे ।
इस निद्रा के कारण हमने ,
वीर हजारों खोए थे ।
बर्फानी बाबा के दर्शन ,
थे अब तक आसान नहीं ।
क्या हम पंगु हुए हैं क्या ये,
अपना हिंदुस्तान नहीं ।
पहुंची जब ये पीडा़ अपनी,
भारत मां का लाल उठा ।
अपना असली रूप दिखाने,
ले त्रिशूल महाकाल उठा ।
कर री ध्वस्त तीन सौ सत्तर ,
जो दीवार बनाती थी ।
उसके हर एक शब्द पंक्ति से,
बू नफरत की आती है ।
थर्टी फाइव ए का भी ,
संहार किया ,अच्छे दिन हैं ।
बच्चा बच्चा बोल उठा हां,
मोदी है तो मुमकिन है ।
मिटा दिया नासूर देह से ,
भारत मां हरसाई है ।
वंदे मातरम् वंदे मातरम्,
हो स्वीकार बधाई है ।