गुरु पूर्णिमा पर्व यह..........
गुरु पूर्णिमा पर्व में,गुरुओं का सम्मान।
हिन्दू संस्कृति ने सदा,माना है भगवान।।
अंधकार को है भगा , जग में करें प्रकाश।
पथ दिखलाते हैं यही, करते नेक प्रयास।।
प्रगति और उन्नति के, यही खोलते द्वार।
इनके श्रम औ त्याग से, जग का है उद्धार।।
जीवन जीने की कला, बदलें मन की सोच।
ज्ञान और विज्ञान में, पारंगत सर्वोच्च।।
आदि काल से है बना, गुरु के प्रति सद्भाव।
देव,मनुज औ असुर में, श्रृद्धा-भक्ति का भाव।।
देवों के गुरु बृहस्पति, दैत्य शुक्र्राचार्य।
वेदब्यास अरु परशुराम, थे महान आचार्य।।
त्रेतायुग में पूज्य थे, रामराज्य के मित्र।
गुरु विशिष्ठ आचार्य जी, ब्रम्हर्षि विश्वामित्र।।
गुरुवर बालमीकि ने, रचा रामायण ग्रंथ।
रामराज्य परिकल्पना, का अद्भुत है पंथ।।
संदीपनि गुरु कृष्ण के, जिनसे पाया ग्यान।
द्वापर में उनने किया, जग जाहिर कल्यान।।
कौरव पांडव के गुरु, द्रोणाचार्य महान।
पारंगत थे हर विषय, कुशल बुद्धि बलवान।।
वेदब्यास आचार्य ने, सृजन किये कई वेद।
ग्रंथ महाभारत रचा, कौन सका है भेद।।
चन्द्रगुप्त के गुरू ने, फैलायी थी भोर।
नंदवंश का नाश कर, सौंपी सत्ता डोर।।
नाम गुरू चाणक्य था, लिखे अनोखे शास्त्र।
राज, अर्थ व कूटनीति, कलयुग का ब्रम्हास्त्र।।
विद्यालय विद्यार्थी, और गुरू हों नेक।
तीनों के सहयोग से, सद्गुण बढ़ें अनेक।।
इनके तपबल से गढ़ें, हम जीवन संसार।
गुरुओं की हम वंदना, करते बारम्बार।।
मनोजकुमार शुक्ल "मनोज"
९४२५८६२५५०