दोनो को ज़िद प्यारी थी
अहम की लड़ाई ज़ारी थी...
दर्द दिलो में था बहुत
पलकें गम से भारी थी...
पहल आखिर करू क्यों
खुद से ही यह लड़ाई थी...
मन को अब सुहाता नही
बड़ी लम्बी यह जुदाई थी...
बढ़ चली हैं बैचनियां
खामोशियाँ अब छूट रही थी..
मुस्कुरा उठे लब मिलन पर
बाहों की सरगोशियां थी...
जीत गया जब इश्क़ तो
टूटी ज़िद की लड़ाई थी...
शिरीन भावसार
इंदौर (मप्र)