#पुण्यतिथि_राजकपूर 2 जून ●●●
कल खेल में, हम हों न हों
गर्दिश में तारे रहेंगे सदा
भूलोगे तुम, भूलेंगे वो
पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा।. . .
आज की युवा पीढ़ी को भले ही उस फ़नकार का अभिनय 'आउट डेटेड' लगे, लेकिन अभिनय के असली रंग जानने वाले लोग आज भी उस शख्स की प्रतिभा के कायल हैं। वह शख्स यानी #रणवीर_राज_कपूर , जो एक दिग्गज अभिनेता, और निर्माता-निर्देशक होने के साथ एक बेहतरीन इंसान भी था। इस बॉलीवुड शोमैन ने अपनी नीली आँखों से न केवल भारतीय सिने प्रेमियों को सपने देखना सिखाया था बल्कि महान #चार्ली_चैपलिन के किरदार को भी आम जनमानस में फिर से जिंदा कर किया था।
करीब तीन दशक पहले मई 1988 में, दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किए जाने के दौरान ही राज साहब को दमे का दौरा पड़ा था और उसके बाद दिल्ली के 'एम्स' में एक महीना जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करने के बाद, आज ही के दिन वो दुनिया को अलविदा कह गए थे।
मात्र 24 वर्ष की उम्र में 'आर.के.फिल्मस' की स्थापना और #आग (1948) जैसी बेहतरीन फ़िल्म का निर्माण करने के बाद जब राज कपूर ने वर्ष 1952 में फिल्म #आवारा को प्रदर्शित किया तो यह फ़िल्म उनके सिने कैरियर की अहम फिल्म साबित हुई जिसने उनकी धूम, उस दौर में भी विदेशों तक मचा दी थी।
उनकी फिल्मी कहानियों का 'कन्सेप्ट' और तीक्ष्ण दृष्टि से फिल्माया गया सौंदर्यबोध, उनकी फिल्मों का एक खास हिस्सा रहा है। इनका चमत्कार दर्शक उनकी पहली फ़िल्म आग से लेकर आवारा, श्री चार सौ बीस, जिस देश में गंगा बहती है, मेरा नाम जोकर, सत्यम शिवम सुंदरम, बॉबी, प्रेम रोग और राम तेरी गंगा मैली तक अनिगिनित लाज़वाब फिल्मों में देख चुके हैं।
/वीर/