8766699975 madan GODARA JAAT
"प्रकृति बदल रही है"
प्रकृति बदल रही है...
सुनो,हमसे कुछ कह रही है।
इस बदलाव की आहट सुनो,
प्रकृति का दर्द महसूस करो।
मिट्टी में अब वह खुश्बू नहीं
मटके का पानी मीठा नहीं
इंसान अब इंसान नहीं
जानवर रहे वफादार नहीं..
मौसम में गर्मी बढ़ गई है,
बारिश भी अब कम हो गई है
गंगाजल भी अब शुद्ध नहीं
प्रेम भी अब विशुद्ध नहीं
यह संकेत है प्रकृति के
विनष्ट हो रही सृष्टि के
दो पल रुक कर ज़रा सोचो..
आखिर यह सब क्यों हो रहा है..
क्योंकि प्राकृतिक संसाधनों का अतिशय दोहन हो रहा है
ज्यादा पाने की हवस में इंसान
अपनी प्रकृति खो रहा है
हरियाली को खा गई इमारत,
कारखानों से हुई हवा प्रदूषित।
बहते जल पर भी हैं बंधन
मिट्टी में बस गए रसायन,
अन्न में विष घुल गया है,
जीना मुश्किल हो गया है।
यह किस तरह का हो रहा विकास?
यह विकास है या विनाश..?
सबको जल्दी है ज्यादा पाने की,
सब में होड़ है आगे बढ़ने की,
लेकिन वो कब तक सहेगी,
प्रकृति हमारा ध्यान कब तक रखेगी..
प्रकृति जब तक शांत है,
वह पार्वती माँ है,वह माँ धरती है
जब वह गुस्से में आती है...
तो साक्षात शिव का रूप धरती है,
खोलती है अपना तीसरा नेत्र,
पूरी सृष्टि को भस्म करती है।
अब भी हमने ना सुनी
प्रकृति की वाणी,
अब भी ग़र हमने की बस
अपनी मनमानी,
फिर भुज सा भूकंप आएगा,
फिर केदार दोहराया जाएगा,
हम सब मारे जाएँगे,
यह जहाँ मिट जाएगा।
सृष्टि के लिए जरूरी है प्रकृति
हम सब सुने उसकी पुकार,
हम सब करें प्रकृति से प्यार
उसका हमेशा ख्याल रखें
उसे स्वच्छ रखें,श्रृंगार करें
जीवनदायिनी प्रकृति का हम
जीवनपर्यंत आभार करें,
जीवनदायिनी प्रकृति का हम
जीवनपर्यंत आभार करें....
सर्वाधिकार सुरक्षित,
लेखिका-
सुश्री प्रांजल श्रीवास्तव,भोपाल
काव्य-कृति-"रंग"
-- Pranjal Shrivastava
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