इस चाय में जैसे
तेरी कत्थई आँखें खिल रही हैं
तूने छुआ होगा इसे
जो ये यूँ उबल रही है
उफ़्फ़...तेरी बातों की खुशबू
जो धुएँ सी उमड़ रही है
ये चाय वो अधूरी मुलाकत है
जो तुमसे होने को तड़प रही है
ये मखमली प्याली हाथों से लिपट रही है
तेरी मौजूदगी जैसे मुझमें सिमट रही है