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जब पहली बार
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जब पहली बार
लोगे तुम
मेरा हाथ
अपने हाथ में
वो काँपेगा पल भर को
तुम पर.. संदेह से नहीं,
रुमानियत से उपजी ..
सिहरन से भी नहीं,
शायद ख़ुद को मिलने वाले
उस असीम सुख पर
शक़ की होगी वो कम्पन..
तुम झटकना नहीं
भींच लेना उसे
अपनी मुट्ठी में ,
हौले हौले
प्रतिकार त्याग चुका मेरा हाथ
सौंप देगा ख़ुद को
जब पूरी तरह से
तुम्हारी उंगलियों की जकड़न को
तब
तुम्हारे छोड़ने पर भी
नहीं छूटेगी.. वो गरमाहट
रहेगी वहीं,
हम दोनों की हथेलियों के बीच
हमारे जुदा होने के बाद भी
क्योंकि
सपना हो तुम
तुम्हें तो टूटना ही है
©अंजलि सिफ़र