Hindi Quote in Poem by Pranjal Saxena

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#KAVYOTSAV -2

अहा! प्रलय क्या नृत्य है


कभी न कभी तो प्रलय आनी ही है । सारी सम्पदाएँ , सभी मनुष्य एक साथ काल-कलवित होने ही हैं । एक ऐसा समय जब चारों ओर मात्र मृत्यु ही होगी और कोई शोक मनाने वाला न होगा । यद्यपि ये कोटि वर्षों बाद होना है , तथापि इस विषय ने मुझे लुभाया है । इसलिए एक कविता की रचना सहज ही हो गई है । विशेष ये है कि इसमें मैंने कल्पना की है प्रलय के उन 2-4 मिनट में ईश्वर की क्या प्रतिक्रिया हो सकती है । इसी प्रतिक्रिया को शब्दों में पिरोया है , जहाँ ईश्वर प्रलय को हेय दृष्टि से नहीं देख रहे अपितु प्रलय लीला को एक नृत्य सरीखा मानते हुए नवीन सृजन के लिए एक प्रक्रिया मात्र मान रहे हैं ।


अहा! प्रलय क्या नृत्य है,
अहा! प्रलय क्या नृत्य है।

आज पुनः एक दुर्लभ अनुभव,
धरती का ये वीभत्स उत्सव।

सम्पूर्ण विनाश, अंतिम हलचल,
चहुँदिश उत्पात, घोर कोलाहल।

प्रत्येक गाँव और प्रत्येक शहर,
तेरी अठखेलियाँ और तेरा कहर।

तू सृष्टि का अंतिम कृत्य है,
अहा! प्रलय क्या नृत्य है।

प्रलय तुम्हारा श्रेष्ठ स्वभाव,
पूर्ण विनाश बिना भेदभाव।

आँख मूँदकर सबको दण्ड,
चूर-चूर किए सबके घमण्ड।

पृथ्वी का अंतिम समय आया,
पहाड़ टूट समुद्र में समाया।

चहुँओर समानता का दृश्य है,
अहा! प्रलय क्या नृत्य है।

शीत सागर हिमाच्छादित पर्वत,
सक्रिय ज्वालामुखी लावा तप्त।

एक - दूसरे में मिले जा रहे,
जल - शर्करा भाँत घुले जा रहे।

पूर्ण समर्पण, शून्य गर्व,
द्वेषों से परे,  अंतिम पर्व।

कितना सुंदर अंतिम सत्य है,
अहा! प्रलय क्या नृत्य है।

भूकम्प, बाढ़ से कई बार चेताया,
पर मनुष्य का घमण्ड कम न पाया।

बड़े रुतबे  और ऊँचे परिचय,
तिजोरी में असीम धन संचय।

ये सारे अलंकार धरे रह गए,
विनाश वृष्टि में सबरे बह गए।

अपना संहारक स्वयं मनुष्य है,
अहा! प्रलय क्या नृत्य है।

कलियुग का ये अंतिम चरण,
मनुष्य मन में पाप को शरण।

धरती से लुप्त हो चुका पुण्य है,
चरित्रवानों की संख्या शून्य है।

भूले प्रेमभाव , भूले नाम हरि,
लालच और स्वार्थ सर्वोपरि।

तू अनुभव का अंतिम कथ्य है,
अहा! प्रलय क्या नृत्य है।

आज सर्वनाश का दो प्रमाण,
फिर करूँगा अद्भुत निर्माण।

ऐ प्रलय ये मेरा है संकल्प,
और श्रेष्ठ होगा नवीन कल्प।

कण - कण से सृष्टि सजाऊँगा,
और उत्कृष्ट मानव बनाऊँगा।

प्रलय के बाद ही तो नव्य है,
अहा! प्रलय क्या नृत्य है,
अहा! प्रलय क्या नृत्य है।

प्रांजल सक्सेना

Hindi Poem by Pranjal Saxena : 111163315
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