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चट्टान
वो चट्टान थी
उसे दिखना ही था मज़बूत
जाने कितने तूफानों और
दरियाओं के वेग को
आत्मसात करना था उसे
सो दिखाती रही खुद को
अडिग , निश्चल
मगर भीतर कहीं उसे भी था इंतज़ार
" एक पत्थर " से " अहिल्या " हो जाने का
शायद
हर चट्टान की तरह ...........
@अंजलि 'सिफ़र'