आत्मा
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जैसे जैसे रात गहराती है
वैसे वैसे मेरी आँखों की नमी
बढ़ती चली जाती है
मैं ज़ोर से आवाज लगाती हूँ
प्रिय आओ
मेरी बाहें हवा में लहराते हुए
दुआ माँगती है
मानो मेरी आत्मा शरीर से निकल कर
तुम्हारे पास पहुँच जाती है
और तुम्हारी आत्मा से एकाकार हो जाती है
दर्द गम घुटन बेचैनी उदासी तड़प
सबसे छुटकारा पा
खुशी से लबरेज हुई जाती है
प्रिय प्रेम में इतना दर्द क्यों है
और इतने आँसू.
तकलीफ है तो खुशी कैसे
पल में खुश हो जाता है मन
प्रिय तुमसे मिल कर
सब बीमारी गायब और दूर जाते ही
फिर बीमारियां तकलीफें
अब मुझे कभी अपने से दूर मत जाने देना
क्योंकि मेरी आत्मा दर्द से कराह उठती है ll.
सीमा aseem सक्सेना, बरेली