#KAVYOTSAV --2
जागो भारत वासी
मैं इस भारत मां की बेटी...
इक अलख लगाने आई हूं।
जो सोए पड़े हैं वर्षों से ...
मैं उन्हें जगाने आई हूं।
पग- पग पर संस्कृति मिटी हुई...
नारी की लाज है लुटी हुई।
कोई देता इन्हें इंसाफ नहीं...
क्या सच में यहां भगवान नहीं?
किस उम्र से इन्हें छिपा के रखें?
क्या जन्म से बुर्का पहनाके रखें?
जो छिपे हुए आस्तीनो में...
वो सर्प भगाने आई हूं।
मैं अलख लगाने आई हूं।
जुगनू मांगो ,तारे मांगो...
जो चाहे तुम प्यारे मांगो।
जो झरना नदी में गिरता है..
उसके बहते धारे मांगो।
ये सब तो सिर्फ हमारे हैं..
हम भारत मां को प्यारे हैं।
कोई फिर से कब्जा कर न सके..
तुमको समझाने आई हूं।
मैं अलख लगाने आई हूं।।
बोतल के पानी को छोड़ो..
आंखों का पानी बिकता है।
वो बिल्कुल वैसा होता नहीं...
जो जैसा सामने दिखता है।
जो देखने में लगती सीता...
अंदर से शील बिल्कुल रीता।
कलयुग में सभी बिकाऊ है...
बस यही बतलाने आई है।
"सुमन" अलख लगाने आई है।।
सीमा शिवहरे "सुमन"
भोपाल मध्यप्रदेश