Hindi Quote in Poem by Neelima Sharma

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#काव्योत्सव 2
तुम्हारे ख़त !!!

जब भी कभी
सबसे छुपकर
किताबो के पीछे
पीले लिफाफे में रखे
तुम्हारे खत
पढ़ती हूँ
तो खुद को
लफ्जों में
लिपटा हुआ पाती हूँ

हर दो लफ्जों के बीच में
जो जरा सा स्पेस होता हैं
वहां महसूस करती हूँ
वजूद अपना
तुम्हारे लफ्जों से लिपटा हुआ सा

जब साँस लेती हूँ
सांसो की लय के मध्य
अपने भीतर बाहर
तुमको पाती हूँ
एक अलौकिक
स्वर्ग सरीखे लोक में
स्नेहिल स्पर्श सा सिमटा हुआ सा

जब जलती हूँ हिज्र की लंबी रात में
सिसकियाँ लेती हुई साँसे
पसीनें से तरबतर
मेरी पेशानी और पिंडलियाँ
अचानक जगा देती है
अँधेरी काली रात में
महसूस करती हूँ वज़ूद अपना निपटा हुआ सा

खत तेरे एक पल को पढ़ती हूँ
और लफ्ज़ मुहर बन छाप छोड़ देते है
दिल ओ दिमाग पर
सोते जागते हुए तब
वज़ूद मेरा जमीन पर होता हैं
और सोचे आसमान पर ...................

#निविया
#नीलिमा

Hindi Poem by Neelima Sharma : 111160501
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