#काव्योत्सव2
श्रेणी : हास्य
" राशन को धन्यवाद "
महीने की शुरुआत में
एक रविवार की शाम
मैं और मेरे
पति राशन की दुकान पहुँचे।
लिस्ट थोड़ी लम्बी थी
सो वक्त भी कुछ ज्यादा लगा।
वहाँ से निकले तो
पार्लर के सामने आ रूके।
मैं उतरी
तो पतिदेव ने फरमाया -
जरा जल्दी आना।
पार्लर को बन्द देख
उल्टे पैर लौटी,
गाड़ी में बैठी
तो पाया
खाली वक्त का इस्तेमाल
मोबाइल पर गाना देख
किया जा रहा है।
मैंने कहा - अरे ! क्या कर रहे हो ?
झुटपुटा हो चला है
पीछे ही तो चौकी है,
ऐसा ना हो
आवारगी के जुर्म में अंदर कर दें,
बड़ी भद्द पिटेगी।
कहने की देर थी
दो यमदूत हाजिर थे।
एक पुलिसिए ने पूछा -
क्या कर रहे हो ?
दूसरे ने जुमला दागा -
शर्म नहीं आती चलो उतरो
देखने में तो भले घर के दिखते हो।
आंखों में आँसू ले भगवान को याद कर
पाँव नीचे रखा ही था कि
पहले वाले की आवाज आई -
अरे ! जाने दो, जाने दो
यह तो पति-पत्नी ही हैं,
घर से भागकर रोमांस करने आए
कोई प्रेमी प्रेमिका नहीं।
दूसरे ने पूछा -
न पहचान - पत्र देखा
न शादी का सर्टिफिकेट
फिर कैसे इतने यकीन से
तुम फरमा रहे हो
और बिना सबूत के
इन पर
पति पत्नी का लेवल चिपका रहे हो।
अरे बेवकूफ ! पहले ने समझाया -
जरा गौर से देखो
पीछे सीट पर भरे सामान में
न गिफ्ट है, ना गुलदस्ता
इसमें तो बस नून तेल
और कुछ साबुन सा दिखता है,
लिपिस्टिक, पाउडर, बिन्दी के साथ
बच्चों का आइटम भी नजर आता है।
सुनकर दूसरा मुस्कुराया
कुछ हिदायतों के साथ जाने का सिग्नल दिखाया।
हमने भी गाड़ी दौड़ाई
सड़क पर खड़े हो
मोबाइल से ना खेलने की कसम खाई
भगवान को याद किया
और उस राशन को धन्यवाद दिया
जिसने स्वयं प्रमाणपत्र बन
इस संकट की घड़ी में
हमें पति पत्नी सिद्ध किया।
नीलिमा कुमार