#KAVYOTSAV 2
#काव्योत्सव
एक अहेसास
जिस बदन को चलते हुए देखा हे,
जलते हुए आज उसे मै देखूँगा
कैसे ?
सुबह जिन हाथों से चाय बनाती थी , उन हाथों को में अपने ही हाथों से
आज जलाऊंगा कैसे ?
साथ जीने, मरने का वादा तोड़कर
क्यो चली गयी तुम ?
अकेले इस सफर को अब में पूरी करूँगा केसे ?
बिना कुछ कहे ही,मेरी हर बात जान
जाती थी तुम ,
अन कही वह सब बातें, आज में
बताऊगा किसे ?
आज तक मेरे घर को तुमने संवार कर रखा था,
तुम्हारे बिना उस घर में , अकेले मै
रह पाऊंगा कैसे ?
बीत गए सुख और दुख के दिन
अब तक तुम्हारे साथ,
बचे हुए इन दिनों को तुम्हारे बिना अकेले , मै बिताऊँगा कैसे ?
क्यो चली गई तुम इस तरह मुजे
मझधारमें छोड़कर ?
छिपा कर रखे हुवे इन आंसुओ
को अब मै रोकूंगा कैसे ?
हरसुख रायवडेरा