Hindi Quote in Poem by Arpan Kumar

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कविता

सजनी या कि कल्पना
अर्पण कुमार

जो मेरी कालिमा को
किसी ख़य्याम सा पीती है
वह कल्पना है
जो मेरी वासना को
अनुष्ठान मान
अपने तईं
भरपूर निभाती है,
वह कल्पना है

आकाश बेपर्दा है
चतुर्दिक
और धरती ने
लाज छोड़ रखी है
जो इस मनोहरता को
मेरी दृष्टि में भरती है,
वह कल्पना है
मेरे रचे को किसी
कादंबरी सा
जो गुनगुनाती है,
वह कल्पना है

रख अपने मान को
परे
जो मुझे मानती है,
वह कल्पना है
जिसका ताउम्र ऋणी रहूँगा,
उस विराट ह्रदया को
पहुँचे मेरा सलाम
जो मेरे एकान्त को
किसी कलावंत सा दुलारती है,
वह कल्पना है

कँपकँपाते कँवल
को जो झट अपना
शीतल गोद सौंपती है
अपराध कैसा भी हो,
जिसकी कचहरी मुझे
रिहा कर देती है
जिसकी कटि से
लग
मेरे सपने कल्पनातीत
उड़ान भरने लगते हैं
ख़ुद काजल लगा
जो
मुझे
बुरी नज़रों से बचाती है,
वह कल्पना है

हर सच में
कुछ कल्पना है,
हर कल्पना का
अपना भी कुछ सच है
कुछ लिखे गए
और प्रेषित हुए,
जो अनलिखा रहा,
वह भी तो ख़त है

उससे मुझे मिलना न था,
उसे मेरे पास आना न था,
जानते थे हम इसे
जिसे मैंने फिर भी दुलारा
और जो मुझको
ख़ूब है सही,
हासिल यही वो वक़्त है

उसे बस घटित होना है,
सच में हो या झूठ में,
गली में हो
या हो बीच अँगना
प्यार तो बस हो जाता है,
खुली आँखों से हो या
देखें हम कोई सपना

पक्षी कलरव करते हैं,
पेड़ों के पत्ते सरसराते हैं
और संध्या गीत कोई गाता है
तुम चुपके से
मेरे पास चली आती हो,
सजनी हो या हो कि कल्पना।
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#KAVYOTSAV -2

Hindi Poem by Arpan Kumar : 111157565
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