पता है...
पहले मैं तुम्हे पल पल याद करता था लेकिन अब ऐसा नहीं है क्यूंकि अब मैं तुम्हे भूलता ही नही, मेरी आँखों को एहसास ही नही होता के कब वो सोई, कब जागीं पर ये जब भी मौका पाती हैं निहारती रहती है, ये सरहदें, जो लोहे की नुकीली तारों की दीवार सी बनी खड़ी हैं l कैसे हमारा प्यार मोहताज हो गया है, चन्द कागज़ और धारदार सरहदों का, कहते है प्यार सरहदों को लांघ कर भी दिलों को मिला देता है पर मेरे प्यार का लहू रिसने लगा है अब, इन नुकीली तारों से छलनी हो हो कर, जब भी हर बार तुम्हारे पास आने के लिए ये कदम बढ़ाता है, अब तो हवाएं भी कितनी मजबूर सी लगती है, जो तुम्हारी कोई खबर नही लाती, तपती रहती हैं ये भी मेरे जिस्म सी और सरहदों से टकरा कर खो देतीं हैं अपना वजूद l
तुम्हे याद है, जब हम सरहदों को भूल कर एक हो गए थे, उस खुदा के बनाये इश्क़ में, लेकिन तुमने सच कहा था ,खुदा के इश्क़ से मजबूत ये नुकीले तारो की दीवार है, और उस से भी पथरीले इसे बनाने वालों के दिल जिनमे इश्क़ के चाहे जितने बीज बो लो पर उगते नफरत के कांटे ही हैं जिनमे उलझ कर न जाने कितने इश्क़ मर गए और ना जाने कितने मरने बाकी हैं l हम अक्सर बन्द परिंदों को आज़ाद कर दिया करते थे कि उनको भी इश्क़-ए-मन्ज़िल मिल जाये, काश ...हम भी परिंदे होते...l
पता है.. मेरी आँखें फफक पड़ती हैं, जब ये हवाएं बिल्कुल ख़ामोशी से बिना तुम्हारी कोई बात कहे, मेरे कानो को छू जाती हैं और एक भयावह सा सच मेरे दिल के कागज़ पर किसी धारदार कलम सा चुभ जाता है l
लेकिन मैं तुम्हे मिलूंगा, हमेशा की तरह
मुझे यकीं है के एक दिन तुम आओगे, फिर से हम परिंदों को आज़ाद करेंगे और उनके साथ हम भी इस ज़मीं को छोड़कर कहीं आसमान में गुम हो जायेंगे!
दूर बहुत दूर जहाँ हमारा प्यार इन नफरत भरी कटीली सरहदों का मोहताज़ नही रहेगा...