अद्भुत ! आश्चर्यजनक !
आजकल एक बड़ी मज़ेदार चीज़ देखने को मिल रही है।
वर्षों से हम जिन लेखकों और साहित्यकारों को पढ़ और सराह रहे थे,उनमें से कई आज अपनी पूरी ताकत केवल वर्तमान सत्ता को कोसने, विरोध करने, मज़ाक उड़ाने और उस पर तरह-तरह की टिप्पणी करने में लगाए हुए हैं.
ऐसे-ऐसे नामी संपादक जिन्हें किताबों और पत्रिकाओं के प्रूफ देख पाने तक का समय नहीं मिलता था, वे मोदीजी के भाषण, उक्तियाँ,उच्चारण,पहनावे, कार्यकलाप, भारतीय जनता पार्टी के कार्यों, कार्यक्रमों पर इस तरह टकटकी लगाए हुए हैं जैसे इनका जन्म ही इस काम के लिए हुआ है.देश की जिस जनता ने ३०० सीटें देकर इस दल को सत्तासीन किया है, उसके समर्थकों के लिए भी इन्होंने तरह-तरह के नाम ईज़ाद कर लिए हैं और ये रात दिन, सोते जागते, उठते बैठते केवल यही देख रहे हैं कि मोदीजी पल-पल क्या कर रहे हैं !
किसी समय आपातकाल के बाद इंदिराजी को भी ऐसा ही सौभाग्य मिला था कि हर आदमी उनकी ही बात कर रहा था, चाहे उनके पक्ष में, चाहे उनके विरोध में.शायद वे इसी कारण आराम से दोबारा सत्ता में आई थीं.
लगता है अगले चुनाव में बीजेपी को अपना प्रचार करने की ज़रूरत बिलकुल नहीं पड़ेगी, वो इन "बुद्धिजीवियों" के रात-दिन के भजनालाप से ही जीत जाएगी।