मैंने ज़िंदगी से इश्क़ किया था...
पर ज़िंदगी एक वेश्या की तरह
मेरे इश्क़ पर हँसती रही
और मैं उदास
एक नामुराद आशिक़
सोचो में घुलता रहा...
पर जब इस वेश्या की हँसी
मैंने कागज़ पर उतारी
तो हर शब्द के गले से
एक चीख निकली
और ख़ुदा का तख़्त
कितनी ही देर हिलता रहा...