एक चित्रकार एक चित्र बनाता है, वह डेड होता है। लेकिन एक चित्र प्रकृति बनाती है, वह लिविंग होता है। एक पत्रकार भी एक वृक्ष बनाता है, लेकिन वह मरा होता है। एक वृक्ष प्रकृति भी बनाती है, लेकिन वह जीवंत होता है। वह प्रतिपल बदल रहा है। कुछ पत्ते गिर रहे, कुछ आ रहे, कुछ जा रहे, कुछ फूट रहे, हवाएं हिला रही हैं।
एक सूर्य सुबह उगता है, और एक वानगाग भी सूर्योदय का चित्र बनाता है। लेकिन वानगाग के सूर्योदय का चित्र ठहरा हुआ है, स्टैटिक, स्टैगनेंट है।
सुबह का सूरज कभी नहीं ठहरता है; उगता ही चला जाता है, कहीं नहीं ठहरता।
इतना उगता चला जाता है कि डूब जाता है, एक क्षण नहीं ठहरता है।
ओशो~
न जन्म न मृत्यु......