तू आवाज़ को अपनी इस कदर उठा,
कि शोर को भी सन्नाटा महसूस हो |
तू चमक को अपनी इस कदर निखार,
कि आफ़ताब चेहरे पर पर्दा ओढ़ ले |
तू ऊंचायिओं को इस कदर छू,
कि आसमान के कद पर सवाल उठे |
तू भेद हवाएँ इस कदर उड़,
की परिंदों के परवाज़ थरथराने लगे |
तू जान ले....
सितम करेगी ज़िन्दगी तुझपे हज़ार |
तू उठ ! तैयार हो !!!
बता उसे, लड़ते हैं कैसे ....
साहसी हैं हम , देख ....... !!!
जीते हैं कैसे !!!
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