महफिल से मैं अपनों की होके मजबूर चला हूँ,
मैं छोड़कर के महफिल बहुत दूर चला हूँ।
गलती न थी उनकी ना हम बेवफा ही थे,
मैं बेकसूर था फिर भी बा-कसूर चला हूँ।
देता ही रहा उसको खुशियों की दुआएं,
बस जिंदगी से उनकी ब-दस्तूर चला हूँ।
पाने को उनकी मंजिल खाई है ठोकरे,
चाहत में मैं तो उनकी राह-ए-तसस्वूर चला हूँ।
राहे भटक गया मैं न रास्ता मिला,
फिरदौस से में तो फिर भी न सबूर चला हूँ।
आशा थी दिल में मेरे ख्वाबों में हो मिलन,
मोहब्बत में मैं तो "पागल "बा फितूर चला हूँ।
✍?"पागल"✍?