छोटे बच्चों के दिमाग़ में भी लगातार एक तर्क की नदी लगातार बहती रहती है। हम चाहे उसे अनदेखा करते रहें या उससे अपरिचित रहें।
मेरे बेटे को मेरी मां, यानी उसकी दादी लोरी गाकर कभी कभी सुलाया करती थीं। हम लोग ये इंतजार करते कि बेटे को सुला कर मां अा जाएं तो हम सब साथ में खाना खाएं।
एक दिन मां उसे सुलाने के लिए गाती जा रही थीं - कान्हा बरसाने में आ जैयाे, बुला गई राधा प्यारी...
बेटा लगभग नींद में ही था और सोने वाला था। तभी मां ने गाया- जो कान्हा मेरा गैल (रास्ता) न जाने, तो गलियन गलियन आ जैयो, बुला गई राधा...
उसे सोया जानकर मां अपनी आवाज़ मंद करती हुई उठने की तैयारी कर ही रही थीं कि वो एकाएक उठ बैठा, और बोला- अरे, जब वो रास्ता जानता ही नहीं तो गली से कैसे आ जाएगा?
मां की हालत देख कर हम सब हंस पड़े, और हंसी की आवाज़ से चौकन्ना होकर बेटा भी डायनिंग टेबल पर हमारे साथ आ गया।