✍️कविता___
बसंत पंचमी का आगाज और जीवन में उल्लास!!!!!
ऋतु बसंत है ऋतुओं का राजा,
हुलसित तन मन सकल समाजा।।
लो, शिशिर को हरा मैं,बसंत फिर आया।
प्रकृति है बदली,मानुष मन मुदित मुस्काया।।
विद्या की देवी का प्राकट्य, हुआ है आज।
वीणा के संग, हंस पर,माँ सरस्वती रही विराज।।
पीली सरसों के खेत से,सखियां दें आवाज।
चलो हिलमिल झूमें सभी, बसंतोत्सव है आज।।
अमवा में बौरें लगीं,फूल औ कलियां महके बाग।
कुहुक रही कोयल मतवाली,छेड़ दिया है राग।।
विद्या की देवी सरस्वती,दे दो ये वरदान।
ज्ञान कभी ना कम पड़े,घटे कभी ना मान।।
कामदेव भी इस ऋतु की,देख बासंती ठंड।
कामना ये ही करें, गृहस्थ के फीके ना हों रंग।।
होली की शुरुआत में,रोप दिया है दंड (डंडा)।
बृज में रस घोल रहे,रसिया,बज रहे ढ़ोल औ चंग।।
बसंत की मस्ती और,वृन्दावन की गलियों में मौड़ा (लड़के)।
जग होरी, बृज होरा,ऐसा मेरा देश,निगोड़ा।।
सभी सफल हों, जीवन में, खुलें उन्नति के द्वार।
माँ सरस्वती के आशीर्वाद से,हो जाए नैया पार।।