दयार-ए-इश्क़ की शमएँ जला तो सकते हैं
ख़ुशी मिले न मिले मुस्कुरा तो सकते हैं
जो राज़-ए-इश्क़ है उन को छुपाएँगे लेकिन
जो दाग़-ए-इश्क़ हैं सब को दिखा तो सकते हैं
हम इम्तिहान में नाकाम हूँ ये रंज नहीं
इसी में ख़ुश हैं कि वो आज़मा तो सकते हैं
यही बहुत है कि इस ख़ार-ज़ार-ए-दुनिया में
तुझे हम अपने गले से लगा तो सकते हैं