....... और आख़िर दो महीने की निरंतर बीमार अवस्था के बाद वे चली गई। आगामी 18 फरवरी को 94 वर्ष की होने वाली कृष्णा सोबती जी हिन्दी की उन आख्यायिका (फिक्शन) लेखिकाओं में से थी जो अपने बेलगाम, स्प्ष्ट और मुखर लेखन के लिए जानी जाती थी। नारी जीवन और उसके दर्द को शब्द देती उनकी कृतियों में सहज ही उनकी बोल्ड शैली को अनुभव किया जा सकता है।
'साहित्य अकादमी' (ज़िंदगीनामा के लिए) पुरस्कार और 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' (भारतीय साहित्य का सर्वोच्च सम्मान ) के अतिरिक्त
'कछा चुडामणी पुरस्कार', 'शिरोमणी पुरस्कार', 'हिन्दी अकादमी अवार्ड', 'शलाका पुरस्कार' और
'साहित्य अकादमी फेलोशिप' से भी उन्हें सम्मानित किया गया था।
'मित्रो मरजानी, ज़िन्दगीनामा, समय सरगम, बादलों के घेरे (कहानी संग्रह) और 'सूरजमुखी अंधेरे के' जैसी कृतियाँ सदैव ही संसार में उनके नाम के साथ अमर रहेंगी।
कृष्णा जी अपने लेखन में, हमेशा ही अपने कथा शिल्प में नए-नए चरित्रों को गढ़ने में सिद्धहस्त रही थी। वे उन हिंदी साहित्यकारों में से रहीं है जिनकी हर कृति का चरित्र उनके अपने पिछले चरित्र से आगे निकल जाता था।
सादर विनम्र श्रद्धांजलि सहित
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