गिरेबान
सुबह सुबह एक आदमी मंदिर में गया और हाथ जोड़कर बोला- भगवन मेरी मनोकामना पूरी करो।
कुछ ही देर में दूसरा आदमी वहां आया और अगरबत्ती जला कर बोला- प्रभु मेरी इच्छा पूर्ति करना।
मुश्किल से एक पल बीता होगा कि तीसरे आदमी ने वहां प्रसाद चढ़ा कर कहा- हे ईश्वर,मेरी सुनो।
तत्काल चौथे आदमी ने आकर कुछ भेंट चढ़ा दी और कहा- मेरी मुराद पूरी करो भगवान।
वह आदमी पलटता,उसके पहले ही एक और व्यक्ति बोरा भर नोट लाया और वहां रख कर हाथ जोड़ दिए, बोला- तेरा ही आसरा है भगवान।
देखते देखते एक आदमी ने वहां हीरे जवाहरात का थाल चढ़ाया और बोला- मेरी मनोकामना पूरी करना परमपिता।
तभी एकाएक कोलाहल होने लगा,मंदिर के बाहर भीड़ जमा होने लगी।कुछ आवाज़ें आने लगीं कि ईश्वर लालची है, ये गरीबों की नहीं, अमीरों की सुनता है। इसे हटाओ। भगवान को हटाओ!
चारों ओर हाहाकार मच गया। अराजकता फैलने लगी।
लेकिन तभी लोगों ने सुना कि मूर्ति से कोई आवाज़ अा रही है,लोगों के आश्चर्य का पारावार न रहा,वे कान लगा कर सुनने लगे। मूर्ति कह रही थी- मुझे नहीं, उसे हटाओ जो ये सारा चढ़ावा ले जाता है... और हो सके तो कभी अपने गिरेबान में भी झांको!