रविवार 2 दिसंबर 2018 को जयपुर के चर्च रोड स्थित रोटरी भवन सभागार में उपन्यास "अकाब" पर समीक्षा संगोष्ठी का आयोजन अखिल भारतीय साहित्य परिषद की ओर से किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री मथुरेशनंदन कुलश्रेष्ठ ने की जबकि तुलसी मानस संस्थान के अध्यक्ष श्री राम लक्ष्मण गुप्ता इस अवसर पर मुख्य अतिथि थे।
श्री कुलश्रेष्ठ ने कहा कि उपन्यास अंतराष्ट्रीय विस्तृत फलक समेटे हुए है और इसमें भारतीयता की अपेक्षा कुछ अधिक खुलापन है। इस की पठनीयता और सूचनात्मकता के बावजूद इस बात की पूरी संभावना है कि नई पीढ़ी इसके उत्तेजक विवरणों में रस लेती दिखाई दे। युवा लेखिका कविता मुखर ने पुस्तक के अनेक उद्धरणों के माध्यम से बताया कि यह युवा पीढ़ी के लिए आधुनिक मूल्यों का जीवंत दस्तावेज है। इसे किसी सीमित परंपरावादी चश्मे से नहीं पढ़ा जाना चाहिए। डॉ सुषमा शर्मा ने इसकी भाषा के प्रवाह व पठनीयता को अद्भुत बताया। प्रोफ़ेसर विमला सिंघल ने कहा कि उपन्यास बेहद नयापन लिए हुए है किन्तु लेखक की पूर्व कृतियों को देखते हुए अपेक्षा कुछ अधिक ही रहने के कारण वे इसे कुछ सीमाओं में ही स्वीकार कर सकीं हैं।
रमेश खत्री, योगेश कानवा, कुसुम अदिति, साकार श्रीवास्तव, इंद्रकुमार भंसाली ने भी क़िताब की विस्तृत समीक्षा प्रस्तुत की। डॉ अखिलेश शर्मा ने कहा कि ताज़गी भरे कथानक को पढ़ते हुए कई ऐसे प्रसंग भी उपस्थित हुए जिनकी बाबत मैं लेखक से बातचीत करने का लोभ भी संवरण नहीं कर सका। प्रखर साहित्यकार बाबू खांडा ने कहा कि गोविल जी ने अकाब की वृत्ति को बखूबी पकड़ा है और आज अक़ाब जगह जगह हैं। रमेश खत्री ने इसे अपने समय की समस्याओं पर सार्वभौमिक सरोकारों की किताब बताया।
योगेश कानवा का कहना था कि इसके नाम को लेकर बनी जिज्ञासा पुस्तक पढ़ने पर शांत हो जाती है क्योंकि इसके अंतिम अध्याय में नाम को लेकर सार्थक स्पष्टीकरण दे दिया गया है। कुछ वक्ताओं ने इसके उत्तेजक प्रसंगों को लेकर सवाल उठाए जिन पर बोलते हुए प्रबोध कुमार गोविल ने कहा कि उपन्यास के परिवेश को देखते हुए इस बात का महत्व तय किया जाना चाहिए कि जिन देशों की ज़मीन पर कथानक परवान चढ़ रहा है उनकी संस्कृति संस्कार क्या हैं। केवल इस बात से इसमें भारतीय मूल्यों की अपेक्षा नहीं की जा सकती कि लेखक भारतीय है।
मुख्य अतिथि श्री राम लक्ष्मण गुप्ता ने इसे तमाम वैदेशिकता के साथ साथ भारतीय मूल्यों से जुड़ी रचना बताया।
कार्यक्रम का संचालन श्री साकार श्रीवास्तव ने किया।