इस तरह से कई बार बात प्रभावशाली बन जाती है कि आप कुछ और सोच रहे हों और दूसरा कुछ और। मगर फ़िर आपसी चर्चा और तालमेल से एक तीसरी बात पैदा हो जाती है जो यक़ीनन नई होती है। ऐसे प्रयासों से लिखी गई कहानियों पर बनी फ़िल्मों को देखने के बाद दर्शकों को हैरानी होती है कि ये बात किसी दिमाग़ में आई कैसे।
अभी हाल ही में आई फ़िल्म "अंधाधुन" भी कभी कभी आपको ऐसा ही आभास देती है।