Hindi Quote in Story by Prabodh Kumar Govil

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"भोजन"
एक बालक ने गुरु से विद्यालय में प्रश्न किया-"गुरुदेव, भोजन किसे कहते हैं?"
गुरु ने कहा-"शरीर पल-पल चुकता घटता रहता है, इसे फिर से जीवंत बनाये रखने के लिए जो भी पदार्थ नियमित रूप से ग्रहण किये जाते हैं उन्हें भोजन कहा जाता है"
बालक संतुष्ट हो गया। कुछ सोचकर बालक ने पुनः कहा- "गुरूजी, भोजन में क्या-क्या पदार्थ आते हैं?"
गुरु कुछ बोल पाते, इसके पहले ही भगदड़ सी मच गयी। आश्रम में वन से भटकता हुआ एक तेंदुआ घुस आया।
उसने ताबड़तोड़ सामने बैठे गुरु पर हमला कर दिया और मुंह में दबा कर घसीटता हुआ उन्हें बाहर की ओर ले जाने लगा।
दहशत और भयातिरेक से सभी बालक सांस रोके यह दृश्य देखते रहे। किसी से कुछ करते न बन पड़ा।
तेंदुए के कुछ दूर जाते ही लड़कों की चेतना लौटी और वे झुण्ड की शक्ल में जाते हुए तेंदुए पर टूट पड़े। लाठी, पत्थर, ईंट..... जिसके जो हाथ लगा वही उसका हथियार बना।
तेंदुए ने शायद इतनी संगठित शक्ति पहले कभी देखी न थी। वह बदहवास होकर शिकार को ज़मीन पर छोड़ जंगल की ओर भागने लगा।
संयोग से गुरूजी को ज़्यादा चोट नहीं आई थी। वे जितने भयभीत थे, उतने ज़ख़्मी नहीं थे।
यह भी संयोग ही था कि आश्रम किसी शहर में नहीं, बल्कि एक गाँव के बाहरी हिस्से में था, अतः न मीडियाकर्मी वहां आये, न पुलिस को ही खबर हो सकी, न वन विभाग से अधिकारी बुलाये जा सके।
गुरूजी ने घटना को आपातकाल मानकर विद्यालय की छुट्टी भी नहीं की। थोड़ी ही देर में सब कुछ सामान्य होकर अध्ययन फिर सुचारू रूप से चलने लगा।
गुरु ने कहा-"हाँ, तो हम कहाँ थे? क्या पूछ रहे थे तुम?"
बालक ने कहा-"कुछ नहीं"
गुरु बोले-"देखा, ये विद्यालय है, यहाँ बिना पढ़ाये भी तुम्हारे प्रश्नों का समाधान मिलता है, इसी से कहता हूँ कि यहाँ नियमित रूप से आया करो।"
शिक्षा:सुख और दुःख, कष्ट और सुविधा, दोनों हमें सिखाते हैं।

Hindi Story by Prabodh Kumar Govil : 111053022
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