मुझे कुछ देर पहले जालंधर की राजेन्द्र कौर का फ़ोन मिला जिन्होंने पहले तो पंजाबी में बोलकर ये जानना चाहा कि क्या मैं पंजाबी समझता हूं? संकोच से मेरे "थोड़ा थोड़ा" कहने पर उन्होंने मुझसे पंजाबी मिश्रित हिंदी में बात की और बताया कि वे अपने पुत्र के पास कनाडा जाकर आईं हैं जो वहां इंजीनियर है। उनका कहना था कि वहां की एक लाइब्रेरी में बैठ कर उन्होंने मेरा उपन्यास "जल तू जलाल तू" पढ़ा और उन्हें को ऐसा भाया कि दोबारा पढ़ने और परिवार व मित्रों को पढ़ाने के लिए उसे उन्होंने फोटोकॉपी करवा लिया। उन्हें उपन्यास की नायिका रस्बी और उसके बेटे किंजान ने अपने आपसी रिश्ते के लिए इतना लुभाया कि वे बार - बार आशीर्वाद और बधाई देती हैं।
नौ भाषाओं में अनुवाद होकर छपा ये उपन्यास उन्होंने पंजाबी में पढ़ा। अब इस पर क्या कहा जाए- कोई ऐसा कहता सोचता है,इसी दिन के लिए हम रातों को जागते हैं और कागज़ काले करते हैं। मेरा फ़ोन नंबर उन्हें किताब से ही मिला।