English Quote in Blog by Manu Vashistha

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#मैं #सूत्रधार , मेरा कोई रूप, आकार नहीं, कहीं भी आजा सकता हूं, किसीके भी #मन की बात जान,उसे अपनी #जुबां दे सकता हूं। ऐसे ही प्रसंग पर मैं #सूत्रधार बन अपनी प्रतिक्रिया दे रहा हूं।
पुरुषों!!!!! तुम्हारे लिए बहुत आसान होता है, महान बनना जब चाहा त्याग दिया, और आप महान बन गए!!! धोबी के कहने पर सीता त्याग कर राम! महान #आदर्शवादी बन गए। लक्ष्मण! पत्नी को छोड़ वनवास गए,भाईभाभी के अनुगामी हो #महान बन गए, नन्हे राजकुमार और यशोधरा को सोती हुई छोड़, बुद्ध #महात्मा महान होगए। कहीं ऐसा तो नहीं, जब आपके पास में इनके एवं स्वयं केभी #यक्ष प्रश्नों के कोई हल नहीं सूझते हैं, तो आप तुरंत त्याग की मूर्ति बन जाते हैं। बहुत अच्छा! #जिम्मेदारी से भी #मुक्त हुए और #महानता भी मिली। नाम भी मिला, क्या आप आपने कभी सोचा कि उस स्त्री पर क्या बीती होगी, उसने क्या-क्या नहीं सहन किया होगा। आज भी स्त्री ही भेंट चढ़ती रही है, यह महानता शादी से पहले क्यों नहीं आपाती। अभी कुछ समय पहले एक #दंपत्ति अपनी एकदो (अबोध) वर्षीय #संतान , घरबार, त्याग जैनमुनि हो गए। उस छोटीसी संतान के पालन की जिम्मेदारी भी तो प्रभु ने ही दी होगी...या केवल अपनी #ज्ञानपिपासा को शांत करने के लिए अपने कर्तव्यों को भी इतर कर देना, मेरी समझ से परे है। अचानक रातोंरात तो ज्ञानपिपासा #जागृत नहीं होती। वैसे मेरा मानना है, होई है वही जो राम रचि राखा। सभी तो ऊपर वाले की डोर से संचालित कठपुतली मात्र हैं।
इसी पर मुझे एक वास्तविक किस्सा याद आ रहा है। काफी पुरानी बात है, मेरी मां की एक सहेली थी। उनकी शादी हुई और उनके पति शादी के तुरंत बाद सन्यासी हो गए। जब कभी गांव आते, उन्हें बड़ा सम्मान मिलता, नाम, सब कुछ मिलता।
क्योंकि #उसवक्त लड़कियों को अपना पक्ष रखने का साहस ही नहीं होता था, सो वे इसे भाग्य का लेखा मान स्वीकार करतीं थीं।
कुछ समय पश्चात मेरी मां की सहेली (यानि मौसी) ने, शादीशुदा होने के बावजूद भी, घर में रहते हुए सन्यासिन की तरह ही जीवनयापन किया, जब जिसको जरूरत होती (मायके या ससुराल में) काम के लिए, अपनी जरूरत मुताबिक बुलालिया जाता। या यूं कहें, एककोने से दूसरेकोने में #धकेली जाती रहीं। अब कौन महान था, पता नहीं, लेकिन मैं सूत्रधार तो बस इतना कहता हूं_ वह सन्यासी बने थे, अपनी मर्जी से। उसमें मौसी (मां की सहेली) का क्या दोष था???? फिर भी उन्होंने सहन किया। तो महान कौन हुआ, मन की कर त्याग करने वाला ? या सहन करने वाला ? वृद्धावस्था में जब उन #सन्यासी का स्वास्थ्य गिरने लगा तो वह धीरेधीरे वापस अपनी ससुराल में मौसी के पास आने लगे। क्योंकि वहां सब उनका (मौसीके पति) का बहुत आदर करते थे। लेकिन अब वह उनको अपने साथ ले जाना चाहते थे।उनके मायके वाले भी समझाने लगे कि, चली जाओ न, देखो वो आज भी तुम्हें पूछ रहे हैं, क्या आपका भी यही मानना है, स्त्री का कोई मन नहीं होता, वह बस #अनुगामिनी बनकर ही #महानता हासिल कर सकती है, एक यक्ष प्रश्न????

English Blog by Manu Vashistha : 111042815
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