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#सात्विक आहार _______
#स्वभाव को बदलने और मन को #सात्विक बनाने में भोजन मुख्य है। #मन और #प्राण भोजन से बनता है #सात्विक भोजन से सात्विक #मन तैयार होता है। राजसी और तामसी आहार से राजसी और तामसी मन बनता है। जिस आहार में एक दो वस्तुओं, मिर्च, मसाले,तीखे खट्टे कम हों , शुद्ध स्वच्छ तरीके व शुद्ध विचारों के साथ खाना बने, #वही सात्विक भोजन की श्रेणी में गिना जाता है। स्वच्छता व शुद्ध विचारों के साथ ही खाना खाते समय चुप रहना, ईश्वर का ध्यान भी भोजन को सात्विक बना देता है। ऐसे समय में भोजन के पदार्थों में स्वाद अनुभव नहीं होता। मन भी जीभ का स्वाद लेने नहीं आता, वह किसी दूसरी ही धुन में मस्त रहता है। ऐसा #भगवद #चिंतन किया हुआ भोजन #स्वास्थ्य के लिए #उपयोगी है। क्योंकि उस समय मुख उतना ही भोजन लेता है, जितना शरीर को आवश्यकता है, स्वाद के वशीभूत अनावश्यक नहीं। #माताएं स्वयं भोजन व्यवस्था का ध्यान रखें, व आजकल की #जुगाली संस्कृति (कहीं भी, कैसा भी, कुछ भी खाना) को बढ़ावा देने से बचें। आज के बिगड़ते सामाजिक परिवेश को देखते हुए, ऐसे आहार की महती आवश्यकता है।
#आयु :सत्वबला सुख प्रीति विवधर्ना:,
#रस्या :स्निग्धा स्थिरा हृद्या आहारा: सात्विक प्रिया:।
(#भगवतगीता ,१७ अध्याय, ८ श्लोक)
#आयु , बुद्धिबल, आरोग्य, सुख और प्रसन्नता को बढ़ाने वाले (फल-सब्जियां, आदि) रस युक्त, स्निग्ध (दूध, दही, मक्खन, तेल, नारियल, मेवे आदि) स्थिर (अनाज, गेहूं, चना, चावल आदि) तथा हृदय को प्रिय लगने वाले (साफ-सुथरे पवित्र और रुचिकर ) आहार सात्विक व्यक्ति को प्रिय होते हैं। इस तरह के आहार से मन के अंदर भी अच्छे भाव तथा #सद्गुण उत्पन्न होते हैं। ऐसे आहार खाद्य पदार्थ लंबे समय तक भी खराब नहीं होने के कारण शरीर को #स्वस्थ रखने में सहायक है।आहार शुद्ध सात्विक होने से #अंतःकरण की #शुद्धि होती है, अंतकरण शुद्ध होने से भावनाएं भी अच्छी और स्थिर हो जाती हैं।