प्रतीक्षापल
इस एकांत के संगी साथी
रहती नहीं हूंँ मैं एकाकी
वो संग नहीं होते है,तब
सिर्फ मौन ही पसरे जब,
वो है मुझको तुमसे भी प्रिय
ये प्रियतम मय प्रतीक्षा पल।
हो जाती हूंँ जब बेकल
यादें नाचे है मन आंगन में,
इंतजार में सराबोर मैं,
स्वप्न बुनु फिर तुम्हारे ही
पल पल देखूं द्वारें ही,
इस अंतराल में गीत लिखूं
जिसमें अपनी प्रीत लिखूं,
मन की सब गिरह खोलूं
काटी जो विरह बोलूं,
क्षणिक उदासी आए भी जो,
हो जाती है छूमंतर,
ऐसे ही फिर कट जाते हैं
ये प्रियतम मय प्रतीक्षा पल।
कविता नागर