#kavyotsav
गान्धार की गुरुपद धरा
यह एक लंबे-से दिवस की, एक सुरमय शाम थी
आकाश पर अंतिम किरण थी गुनगुनाती
द्राक्ष* के फल चुन लिए थे, साँझ का आलस घिरा
खेत में ही वहीं लंबे पैर कर वह गिर पड़ा
यह गमकती शाम, सौंधी-सी महक महसूस करता।
दूर के पर्वत-शिखर भी डूबते-से
ज्यों धरा पर एक कोना ढूंढते-से।
ढल चुका था सूर्य, ऊष्मा का झकोरा चुक गया था
और कार्तिक का अँधेरा, पास आकर झुक गया था
बाज़ुओं से ढलककर हल्का पसीना सूखता
कँपकँपाने के लिए वह एक झौंका रुक गया था।
एक मीठी तान पर कोई सहज गाता हुआ
दूर चितवन, गांव के पथ, दूर होता जा रहा था।
गुनगुनाता हुआ वह स्वर -
कुछ कहानी कह रहा था
दोपहर के बाद इतनी शुभमयी यह शाम
विश्व मे शायद कहीं भी, इस तरह ढलती नहीं।
गान्धार की गुरुपद धरा पर यह महीना क्वार का था!
क्रमशः
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#टिप्पणियाँ
दिनभर खेतों में अंगूरों की फसल चुनने के बाद कुछ घड़ी सुस्ताते हुए जय। ढलती हुई शाम।ईसा पूर्व 330, कार्तिक मास।
#गान्धारपर्व , #जयमालव #महाकाव्य
आसपास के खेतों में बाजरे और ज्वार की फसलें तोड़ी जा रही हैं और जय अपने खेत से अंगूरों की फसल चुन रहा है। सुवास्तु घाटियों (स्वात घाटी, वर्तमान पाकिस्तान) में शाम हो रही है और लोग धीरे धीरे घरों को जा रहे हैं।
*द्राक्ष - काले अंगूर
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#जयमालव (ऐतिहासिक महाकाव्य)
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