#kavyotsav
कविताओं की उच्चभूमियाँ
कविताओं की उच्चभूमियाँ -
मेरे शिखरों के अनजाने देस,
वहाँ की उभरन, सिकुड़न।
कुदरत का विस्तार पार वह
नील अचल नग दिखे जहाँ तक।
कई दिवस के बाद आज फिर
हवा बाट की धुली, नहाई
दिशा दिशा में फैली सुघरन
चलती हल्की पुरवाई।
यही ताज़गी मौसम की
वह धुली हुई तस्वीर सामने
एक एक रंगीन नज़ारा
जैसे लगता हृदय थामने।
मेरे सहचर - नील, पयोधर
फूल, पत्तियाँ, और सुधाधर
सब कुछ इतने पास हृदय के
जैसे हो तस्वीर तुम्हारी।