#kavyotsav ( भावनाएँ ज़िंदगी के सफ़र की )
यह सफ़र
यह सफ़र कुछ इस तरह शुरू हुआ ,
नये रास्ते , अंजान गलियाँ , अजनबी लोग और मैं |
हर तरफ़ था शोर , फिर भी कुछ ख़ामोशी सी लगी ,
उन आवाज़ों , रास्तों और लोगों की कमी सी लगी |
मेरी आँखें सब कुछ देख रही थी ,
इन नज़रों में शायद हर अंजान चीज़ों से
परिचित होने की इच्छा थी या
फिर ये भी नए शहर में कुछ पुराना
सा एहसास ढूँढ रही थी |
मैं अभी तक चुप थी ,
एक ही जगह पर खड़ी थी ,
सही रास्ते के इंतज़ार में या
फिर आगे बढ़ने की हिम्मत ही नहीं थी |
ख़ुद को सम्भाला और आगे बढ़ गई ,
हर एक एक क़दम के साथ मानो मैंने ख़ुद को जान लिया हो |
इस रास्तों ने मुझे एक एेसे इंसान से मिलवाया जो
हर समय मेरे साथ थी ,
मेरे साथ ही रोती, हसँती, सोती थी ,
मेरी मुसीबतें ही उसकी मुसिबते थी,
मेरा जीवन ही उसका जीवन था,
और वो इंसान थी मैं ख़ुद |
इस रफ़्तार से चलने वाली दुनिया में
सबसे मिले पर ख़ुद से मिलना
शायद भुल गई मैं |
ख़ुद से परिचित हुए तो रास्ता आसान लगा ,
मंज़िल दूर थी , पर अपनी शक्ति पर विश्वास हुए |
इस रास्ते पर चलते चलते मैने ख़ुद से ही कितनी बातें करली , अपनी ग़लतियों से सीखा ,
सफलताओं पर शाबाशी दी , कुछ महत्वपूर्ण लोगों , यादों और जगह का स्मरण किया |
यह रास्ते अब तक अंजान ही थे ,
पर शायद ख़ुद से परिचित होती गई मैं |
मंज़िले कहा थी , उसका रास्ता क्या था ,
यह तो पता नहीं था , बस चलते रहना है इस सफ़र पर यह पता था मुझे |
जो लड़की रास्ते को अंजान समझकर आगे बढ़ना ही नहीं चाहती थी ,
उसने अपने एक क़दम आगे बढ़ने की हिम्मत से ख़ुद को खोज लिया था |
आज उसमें हिम्मत है हर रास्ते पर चलने की,
यह सफ़र अभी तक अधूरा है,
मंज़िलों की खोज अब तक चल रही है , पर इस सफ़र ने जो मुझे ख़ुद से परिचित करवाया वो इस सफ़र को अभी से ख़ास बना देती है |
मेरा रास्ता एेसा है , जिसमें ख़ुशियाँ भी है और ग़म भी बस अंत अभी अंजान है|
यह सफ़र तो चल ही रहा है , एक दिन शायद मंज़िल भी मिल जाए और मेरा यह अधूरा सफ़र पूरा हो जाए। - शुभाँगी सिंह