#kavyotsav
poem -2
बुढ़ापा...
इस गली उस गली किस गली है ठिकाना हमारा,
ढूँढते फिर रहे है कहाँ गया वो जमाना हमारा?
कभी हम भी मालिक थे अपनी राहों के,
मान में भरे थे गागर अनेक इच्छाओं के,
लेकिन अब नही बचा कोई सुनने को तराना हमारा|
ढूँढते फिर रहे हैं कहाँ गया वो जमाना हमारा?
हम ने भी कितनी ही जवानियाँ देखी हैं,
कितनी ही अधूरी कहानियाँ देखी है,
रह गया अधूरा अब हर फसाना हमरा|
ढूँढते फिर रहे है कहाँ गया वो जमाना हमारा?
आजीवन कष्ट सहकर हम ने अपने चिरागों को जीवन दीया,
खुशियों का प्याला उन्हे देकर,गमों का घूँट खुद है पिया,
ओर आज शमा ने जलाया है परवाना हमारा|
ढूंढते फिर रहे है कहाँ गया वो जमाना हमारा?
उमर क्या ढली हम तो बोझ हो गये,
वो मोहब्बत भरे लफ्ज़ जाने कहाँ खो गये,
अब तो व्यस्तता बन गया है बहाना तुम्हारा|
ढूंढते फिर रहे है कहाँ गया वो जमाना हमारा?
हम तब भी जीते थे,आज भी जी लेंगे,
वक़्त के कड़वे घूंठ को खुशी से पी लेंगे,
इस जीवन के हर रिश्ते को निभाना धरम है हमारा|
ढूंढते फिर रहे है कहाँ गया वो जमाना हमारा?