ये ठहरीं हुई खामोश सी गलियां
टाकते हुई बेरंग सी गलियां,
कभी गुजरना उससे तो मालूम होंगा
बाते सुनती है ये बेजुबान सी गलिंया,
हर बार हम तहलते है इससे
फिर भी राह भटकाती ये नाजूक सी गलिंया,
आँखे बंद कर ना चलना ए दोस्त,
ठोकरोसे युही गीरा देती ये नासमजसी गलिंया,
हम खोज रहे थे रास्ता-ए-जिंदगी,
हमको ही गुम कर रही थी ये काफिर सी गलिंया,
हम यादें बुन रहे थे उन गलियों संग ,
हमे ही भुला दे रही थी ये बेजान सी गलिंया...
- दिkshita