#Kavyotsav
___' खुदा के दरबार में '___
क्या खुदा था कोई,
जो चिर पुरता था ???
क्या खुदा था कोई,
जो चित्कार सुनता था ???
आरस के चौबारे मे,
पथ्थर की मुरत मे,
लेटा हुआ तु भी तमासा देख रहा था क्या ???
हवस के बौछारो मे,
कहेर की सुरत मे,
आयी असुरी हैवानियत तु देख रहा था क्या ???
क्या खुदा था कोई,
जो असुर मारता था ???
इक नन्हा फूल था,
जिसे कुचल दिया था हवस के हैवानो ने,
हर गली हर चोराहे पे थी मोम की बतीया,
देश मांग रहा था,
महिलाओ की गरिमा के हत्यारो को फांसी,
रफा दफा हुई धिरे से इन्सानियत की रद्दीया ।।
लो आज फिर से,
इक नन्ही कली शिकार,
लो आज किर से,
उठी है दबी हुई आवाज,
कब तक चलेगा सियासत के महोरो मे यह खेल,
नात जात धर्म पे टीका है आज संविधान तेरा मोल
रावन की लंका से लौटी थी सिता सुरक्षित अब बोल,
ए खुदा तैरे ही घर मे आज कौन सा चल रहा है जोल ???
क्या खुदा था कोई,
जो ईमान बनाता था ???
क्या खुदा था कोई,
जो इलाज बक्षता था ???
बचाने कही चले गुनहगार,
फिर भी चुप परवरदिगार,
जाग ईन्सान भाग ईन्सान,
अब तुं ही है तेरा सरदार ।।
आँखो देखे सच मे,
कोर्ट कचहरी दौड़ मे,
हर तारीख पे सुनावणी गुनहगार जैल मे जाएगा क्या ???
बलात्कार के कृत मे,
अब कायदा मृत मे,
हर कुकर्मी को बकायदा सजा-ए-मौत नही हो सकती क्या ??
'आझाद' कहे संभलो देखो अने वाली सामत,
समजो ना समजो यह हर घर की है आफत,
करो परवरिश खुद की अच्छी रहो खुद सावध,
फिर क्या कर लेगा हमारा कोई नापाक कपूत ।।
क्या खुदा था कोई,
जो इन्सान बनाता था ???
क्या खुदा था कोई,
जो इन्सानियत बक्षता था ???
-आझाद