# kayvotsav
राष्ट्रीय कवि प्रतियोगिता
कविता
प्रेम
प्रेम है एक सेतुबंध
मनुष्य का नैसर्गिकता के बीच।
रहता है स्थाई अवचेतन मे
होता है परिभाषित
आवश्यकता के अनुरूप।
प्रेम शब्द मे निहित
'अथाह ' अर्थ का समुद्र।
वेदना, संवेदना, चेतना ,उत्साह
दु:साह, नैरेश्य,और अंत मे वैराग्य।
जागृतावस्था मे यह 'सुंदर' शब्द
मे निहित होता है।
सुसुप्तावस्था मे 'सत्य' से परिचय
कराता है।
दो देहों का मिलन प्रेम नही
है आसक्ति
दो आत्माओं का विलय प्रेम नही
है आध्यात्म ।
प्रेम है बस इनके बीच का क्षण
न मिलन की संभावना
और न विरह की कल्पना
प्रेम ठहरता है केवल
इन्ही क्षणों मे।
रुपेन्द्र राज।।
C/O श्री प्रमोद तिवारी
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